कोरोना काल में संकट-मोचक भारतीय सेना
समाचार-1. कोविड सैंपलिंग और
टीकाकरण अभियान में अपना योगदान देते हुए समोट, राजौरी (जम्मू व काश्मीर) स्थित
सेना की राष्ट्रीय राइफल बटालियन ने प्राथमिक स्वास्थकेंद्र कंडी में कोविड सैंपल संग्रह
और टीकाकरण केंद्र स्थापित किया। इसके साथ ही चिकित्सा कर्मियों और स्थानीय लोगों
के लिए 500 लीटर क्षमता की जल भंडारण सुविधा को भी तैयार किया। (21 मई, 2021)
समाचार-2. भारतीय सेना के पूर्वी
कमांड ने तीन दिन के अंदर ही असम के तेजपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में 05 आईसीयू और
45 ऑक्सीजन बेड की कोविड केयर इकाई तैयार की। (14 मई, 2021)
समाचार- 3. भारतीय थलसेना ने
उत्तर-पूर्व के राज्यों से अपने दो फील्ड अस्पताल एयरलिफ्ट करके पटना पहुँचा दिए
और वहाँ पर 500 बिस्तरों का एक कोविड केंद्र तुरंत बनकर तैयार हो गया। (06 मई,
2021)
समाचार- 4. बेंगलुरू में कोविड-19 के
बढ़ते मामलों को देखते हुए भारतीय वायुसेना जालाहल्ली वायुसेना स्टेशन में आम
लोगों के लिए सौ बिस्तरों वाले कोविड देखभाल केंद्र का निर्माण करेगी। इसके पहले
चरण में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के साथ दो दिन के अंदर ही बीस बिस्तर तैयार हो जाएँगे।
बाकी 80 बिस्तर 20 मई तक तैयार हो जाएँगे। इस देखभाल केंद्र में भारतीय वायुसेना
के बेंगलुरू कमान अस्पताल के विशेषज्ञ, स्टाफ नर्स और अन्य पैरामेडिकल कर्मचारी
तैनात होंगे। (04 मई, 2021)
ये समाचार बानगी के रूप
में यहाँ पर उद्धृत किए गए हैं। वर्तमान कोरोना-संकट के समय भारतीय सेना के कामों
और जनसेवा के लिए किए जा रहे प्रयासों से जुड़े समाचारों को समेटकर रखा जाए, तो उनकी
गिनती करना भी कठिन होगा। कहने का आशय यह है, कि देश के उत्तरी छोर से लगाकर धुर दक्षिण
तक और पूरब से लगाकर पश्चिम तक देश के हर एक हिस्से में भारतीय सेना के तीनों
अंगों ने; जल, थल, वायु सेना ने जितनी तेजी और तत्परता के साथ काम किया है, वह
अभिनंदनीय है।
भारतीय सेना के शौर्य को
हमने पिछले वर्ष गालवान में देखा था। सर्जिकल स्ट्राइक में हमने अपनी सेना के
पराक्रम को देखा है। इतना ही नहीं, सीमा पर होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना पर भारतीय
सेना की सक्रियता और देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए रात-दिन की मुस्तैदी हमें
गर्व से भर देती है। भारत की सेना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सैन्य-बल में गिनी जाती
है। सामान्य तौर पर सेना का दायित्व सीमांत सुरक्षा का होता है। शांति और स्थिरता
के दिनों में सेना लोकहित के कामों में संलग्न होती है, लेकिन भारतीय सेना के लिए ये
स्थितियाँ सहज-सुलभ नहीं हैं। हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, कि हमारे सीमावर्ती
देश, विशेषकर पाकिस्तान और चीन की सीमाएँ सुर्खियों में रहती हैं। पिछले वर्ष जब
से चीन के वुहान से होकर सारी दुनिया में फैला कोरोना वायरस भारत के लिए संकट बनकर
खड़ा हुआ था, उसी समय से चीन ने भारत की सीमाओं पर भी अपनी हरकतें इस तरह से शुरू
की थीं, मानों उसे अच्छा मौका मिल गया हो। यह स्थितियाँ पिछले वर्ष भले ही शांत हो
गईं हों, लेकिन इस वर्ष जब भारत में कोरोना संकट की दूसरी लहर ने अपना तांडव मचाना
शुरू किया था, उस समय अच्छा अवसर जानकर चीन ने लद्दाख की सीमा पर अपनी हरकतें फिर
से शुरू कर दी हैं। चीन का सैन्य युद्धाभ्यास भारत की उस शांति की पहल के एकदम
विपरीत है, जिसमें चीन ने पहल की थी और शांति-वार्ता, सैनिकों को पीछे हटाने आदि पर
सहमति जताई थी।
कहने का आशय यह, कि भारत
की आंतरिक स्थिति ऐसी है, जहाँ कोरोना की दूसरी लहर की विभीषिका के साथ ही
ऑक्सीजन, अस्पताल, दवा और चिकित्सकों की कमी को लेकर एक वर्ग भय का वातावरण बना
रहा था। हालात नियंत्रण से बाहर हो रहे थे, और दूसरी तरफ तिब्बत सीमा पर चीन की
हरकतें और पाक अधिकृत काश्मीर सहित भारत-पाकिस्तान सीमा पर आतंकी गतिविधियाँ भी तेज
हो गईं। भारत की सेना के लिए यह निश्चित रूप से परीक्षा की घड़ी थी। ऐसी विषम
स्थिति में भारतीय सेना केवल सीमाओं की सुरक्षा तक ही अपनी जिम्मेदारी को नहीं समेटती,
वरन् देश की सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही देशवासियों के जीवन की सुरक्षा के लिए भी
पूरी तत्परता और सक्रियता के साथ आगे आती है।
पिछले वर्ष, लगभग इन्हीं
दिनों भारतीय सेना ने कोरोना के संकट की शुरुआत को देखते हुए ‘ऑपरेशन नमस्ते’ की
घोषणा की थी। मार्च, 2020 में जब भारत में कोरोना के नए मामले मिलना शुरू हुए थे,
उस समय बहुत बड़ी आवश्यकता इस बात की थी, कि जनता को एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखे,
ताकि संक्रमण की कड़ी टूट सके। इसके लिए जन-जागरूकता और सद्भावना को केंद्र में
रखकर सेना-प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे ने इस अभियान को पूरी ऊर्जा के साथ संचालित करते
हुए सेना के जन-सरोकारों को स्पष्ट किया था। उस समय सेना द्वारा कई स्थानों पर एकांतवास
केंद्रों की स्थापना की गई थी। विभिन्न सुदूरवर्ती क्षेत्रों से मरीजों और
जरूरतमंदों को अस्पतालों तक पहुँचाने, चिकित्सीय सुविधाएँ आदि उपलब्ध कराने के लिए
अनथक प्रयास किए गए थे। भारतीय सेना का काम करने का अपना अनूठा तरीका है। देश पर
आने वाले किसी भी संकट का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए सेना विधिवत् अभियान चलाती है।
इन अभियानों की सफलता के लिए, सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए और संगठित होकर
काम करने के लिए सेना द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों को ऐसे नाम दिए जाते हैं। कोरोना
की दूसरी लहर के साथ ही भारतीय सेना ने पुनः एक नए नाम के साथ कोरोना को हराने के
लिए कमर कसी है। कोरोना की दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना ने अपने
अभियान को ‘ऑपरेशन को-जीत’ नाम दिया है।
वर्ष 2021 में कोरोना
संकट की दूसरी लहर पहले से कहीं अधिक तीव्र और घातक सिद्ध हुई। ऐसी स्थिति में
भारतीय सेना एक बार फिर से दुगुनी ऊर्जा के साथ देश के लोगों की सहायता के लिए सामने
आई। कहा जाता है, कि परिवार के मुखिया की सक्रियता, उसकी तत्परता और समर्पित
प्रतिबद्धता सारे परिवार को न केवल सशक्त, समर्थ करती है, वरन् असीमित ऊर्जा के
साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिए सारे परिवार को संलग्न करती है। इस दृष्टि से भारत के
माननीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की सक्रियता अभूतपूर्व है। उनके द्वारा एक लेख
अप्रैल माह में लिखा गया था। लेख का शीर्षक था- ‘अदृश्य
दुश्मन से जंग : रक्षा मंत्रालय का कोविड-19 को
जवाब’ यह लेख जितना भावुक कर देने वाला था, उतना ही प्रेरक था। इस लेख पर देश के
माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रोत्साहनपरक टिप्पणी ने भी भारतीय सेना को जोश से भर दिया।
जिस समय देश में ऑक्सीजन की कमी को लेकर स्थितियाँ
नियंत्रण से बाहर हो गईं थीं, उस समय भारतीय वायुसेना ने ऑक्सीजन उत्पादक
क्षेत्रों से ऑक्सीजन के टैंकर, ऑक्सीजन उत्पादक संयंत्र और अन्य उपकरणों को तेजी
के साथ जरूरत वाले नगरों-प्रदेशों में पहुँचाया। देश के अंदर विभिन्न दुर्गम
स्थानों, जैसे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में, लद्दाख के दुर्गम क्षेत्रों में
भारतीय वायुसेना ने परीक्षण प्रयोगशाला संयंत्रों, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स,
चिकित्सीय उपकरणों और दवाइयों के साथ ही मरीजों को ‘एयरलिफ्ट’ करने में पूरी सक्रियता
दिखाई। भारतीय वायुसेना के परिवहन वायुयानों ने विदेशों से चिकित्सा-सामग्री लाने
में भी पूरी तत्परता दिखाई। सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और बैंकाक आदि देशों
से खाली क्रायोजैनिक ऑक्सीजन कंटेनर लाने का काम भारतीय वायुसेना ने बखूबी किया। देश
में टीकाकरण अभियान को मजबूत करने के लिए विदेशों से टीकों की खेप लाने के साथ ही
देश के अंदर विभिन्न स्थानों में टीकों की खेप पहुँचाने में वायुसेना की सक्रियता अतुलनीय
है।
भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर वायुयान विगत
महीने भर से तरल ऑक्सीजन और अन्य संयंत्रों को देश के विभिन्न स्थानों में पहुँचाने
के लिए लगातार काम कर रहे हैं। पूरे देश में वायुसेना के सभी प्रमुख हवाई अड्डे,
वायुसेना के सभी बेड़े, सभी श्रेणियों के परिवहन विमान पूरी मुस्तैदी के साथ
चौबीसों घंटे तैनात हैं। इसका असर हमें देश में तेजी से सुधरती स्थितियों में दिखाई
देता है। आज देश में ऑक्सीजन की कमी की खबरें अगर नहीं सुनाई देतीं, तो इसके पीछे
बड़ा कारण भारतीय वायुसेना की तत्परता है। भारतीय वायुसेना ने इस काम को
कुशलतापूर्वक करने के लिए एक स्वतंत्र ‘एयर सपोर्ट सेल’ बनाया हुआ है। यह प्रकोष्ठ
देश के विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक इकाइयों के साथ ही केंद्रीय प्रशासनिक
इकाइयों और चिकित्सा मंत्रालय के साथ समन्वय स्थापित करके देश की चिकित्सा
सुविधाओं को मजबूत करने के लिए अनवरत सक्रिय है। नौसेना और थलसेना द्वारा भी
अलग-अलग सहायता प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं। ये प्रकोष्ठ अपने स्तर पर स्थानीय आवश्यकताओं
के अनुरूप राज्य सरकारों, नागरिक संगठनों आदि को सहायता उपलब्ध कराने हेतु दिन-रात
सक्रिय हैं।
भारतीय नौ सेना के युद्धपोतों ने विदेशों से ऑक्सीजन
सिलेंडर और टैंक आदि की खेप लाकर देश में ऑक्सीजन की कमी को नियंत्रित करने में
बहुत बड़ा योगदान दिया। भारतीय नौसेना के कमान अस्पतालों में कार्यरत विशेषज्ञों,
चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ को दिल्ली, अहमदाबाद, पटना आदि अधिक संक्रमित स्थानों
पर चिकित्सीय सहायता देने के लिए नियुक्त किया गया है। पश्चिमी नौसेना कमान ने
प्रवासी कामगारों के लिए तीन बड़े अस्पतालों को तैयार करने के साथ ही प्रवासी
कामगारों को आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराकर पलायन को रोकने हेतु कार्य किए।
भारतीय थल सेना के लगभग सभी चिकित्सालय सेवानिवृत्त
सैनिकों के परिवारों और आम जनता को चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए कार्य कर
रहे हैं। भारतीय सेना ने देश के विभिन्न दूरदराज के इलाकों में छोटे-छोटे स्वास्थ्य
केंद्रों के परिचालन के साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा संचालित प्राथमिक
स्वास्थ केंद्रों में चिकित्सा सुविधाएँ बढ़ाने में योगदान दिया है।
भारतीय सेना की चिकित्सा शाखा और अनुसंधान शाखा के
कामों का उल्लेख किए बिना कोरोना के संकटकाल में भारतीय सेना के प्रयासों पर बात
पूरी नहीं हो सकेगी। भारतीय सेना की चिकित्सा शाखा के सेवारत चिकित्साकर्मियों और सहयोगी
कर्मियों की बड़ी संख्या देश के अलग-अलग हिस्सों में आम नागरिकों के लिए चिकित्सा-सेवाएँ
सुलभ करा रही है। इसके साथ ही चिकित्साक्षेत्र में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को
देखते हुए सेना ने अपने सेवानिवृत्त चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को पुनः
नियुक्त किया है। यह सेना की अनुशासन-बद्ध कार्यशैली का ही प्रभाव है, कि अपनी चिंता
किए बिना बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त चिकित्साकर्मी भी देश की सेवा के लिए आगे आए
हैं।
भारतीय सेना की शोध-अनुसंधान शाखाओं में से रक्षा
अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) का नाम आजकल चर्चा में है। इसमें कोई दो-राय
नहीं, कि इस संगठन में अनेक कार्यकुशल और उच्चकोटि के वैज्ञानिक कार्यरत हैं,
किंतु इनकी सक्रियता और कार्यकुशलता कोरोना के संकटकाल में खुलकर तब सामने आई, जब
डीआरडीओ द्वारा 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज दवा को कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए तैयार
कर दिया गया। इस दवा को ‘2-डीजी’ के नाम से जाना जाता है। यह कोरोना के मरीजों के
शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को संतुलित करने के साथ ही सार्स-कोविड वायरस के
विस्तार को रोकती है। इस दवा के साथ ही डीआरडीओ ने ‘डिपकोवॉन’ नामक एक किट भी
तैयार की है, जिसके द्वारा केवल 75-80 मिनट के अंदर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का
स्तर जाँचा जा सकता है। ये दोनों दवाएँ बहुत ही कम मूल्य पर आज बाजार में उपलब्ध
हैं और हजारों कोरोना मरीजों के लिए जीवन-रक्षक बनी हुई हैं।
पिछले लगभग पंद्रह महीनों से भारत में व्याप्त
कोरोना-संकट के बीच भारतीय सेना की सक्रियता और उसके अनथक प्रयासों का विस्तार
असीमित है, जिसके अंश-मात्र का उल्लेख ही यहाँ पर हो सका है। भारतीय सेना के लिए
चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। एक साथ चार मोर्चों पर कुशलता के साथ संघर्ष करते हुए
हम अपने वीर सैनिकों को देखते हैं। तिब्बत सीमा पर चीन की चालबाजियों के साथ, पाक
सीमा पर आतंकियों की हरकतों के साथ, देश के अंदर कोरोना के संकट के साथ, और देश के
‘जयचंदों’ के कुचक्रों के साथ भारतीय सेना संघर्षरत है। अपने पराक्रम, अपने शौर्य,
अपने अनुशासन, अपने संगठित प्रयास, अपनी तत्परता, अपने साहस के साथ ही भारतीय सेना
ने कोरोना के संकटकाल में अपने अनथक सेवाभाव से यह सिद्ध कर दिया है, कि वह सीमाओं
की रक्षक ही नहीं, देश की संकट-मोचक भी है।
(सीमा जागरण मंच के मुखपत्र- सीमा संघोष के मई,
2021 अंक में प्रकाशित)
डॉ. राहुल मिश्र