Tuesday, 25 October 2011

Volga Se Ganga (Rahul Sankrityayan) / वोल्गा से गंगा (राहुल सांकृत्यायन)


महापंडित राहुल सांकृत्यायन की कालजयी कृति...     
                   वोल्गा से गंगा : शाश्वत प्रवाह का शालीन दर्शन
वोल्गा से गंगा पुस्तक महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गई बीस कहानियों का संग्रह है। इस कहानी-संग्रह की बीस कहानियाँ आठ हजार वर्षों तथा दस हजार किलोमीटर की परिधि में बँधी हुई हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह कहानियाँ भारोपीय मानवों की सभ्यता के विकास की पूरी कड़ी को सामने रखने में सक्षम हैं। 6000 ई.पू. से 1942 ई. तक के कालखंड में मानव समाज के ऐतिहासिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अध्ययन को राहुल सांकृत्यायन ने इस कहानी-संग्रह में बाँधने का प्रयास किया है। वे अपने कहानी संग्रह के विषय में खुद ही लिखते हैं कि-
  लेखक की एक-एक कहानी के पीछे उस युग के संबंध की वह भारी सामग्री है, जो दुनिया की कितनी ही भाषाओं, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, मिट्टी, पत्थर, ताँबे, पीतल, लोहे पर सांकेतिक वा लिखित साहित्य अथवा अलिखित गीतों, कहानियों, रीति-रिवाजों, टोटके-टोनों में पाई जाती है। इस तरह यह किताब अपनी भूमिका में ही अपनी ऐतिहासिक महत्ता और विशेषता को प्रकट कर देती है।
   राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित वोल्गा से गंगा की पहली चार कहानियाँ 6000 ई. पू. से लेकर 2500 ई. पू. तक के समाज का चित्रण करती हैं। निशा, दिवा, अमृताश्व और पूरुहुत, यह चारों कहानियाँ उस काल की हैं, जब मनुष्य अपनी आदम अवस्था में था, कबीलों के रुप में रहता था और शिकार करके अपना पेट भरता था। उस युग के समाज का और हालातों का चित्रण करने में राहुल जी ने भले ही कल्पना का सहारा लिया हो, किंतु इन कहानियों में उस समय को देखा जा सकता है।
   संग्रह की अगली चार कहानियाँ— पुरुधान, अंगिरा, सुदास और प्रवाहण हैं। इन कहानियों में 2000 ई. पू. से 700 ई. पू. तक के सामाजिक उतार-चढ़ावों और मानव सभ्यता के विकास को प्रकट करती हैं। इन कहानियों में वेद, पुराण, महाभारत, ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों आदि को आधार बनाया गया है।
   490 ई. पू. को प्रकट करती कहानी बंधुल मल्ल में बौद्धकालीन जीवन प्रकट हुआ है। इसी कहानी की प्रेरणा से राहुल जी ने ‘सिंह सेनापति’ उपन्यास लिखा था।
   335 ई. पू. के काल को प्रकट करती कहानी ‘नागदत्त’ में आचार्य चाणक्य के समय की, यवन यात्रियों के भारत आगमन की यादें झलक उठती हैं।
   इसी तरह 50 ई.पू के समय को प्रकट करती कहानी ‘प्रभा’ में अश्वघोष के बुद्धचरित और सौंदरानंद को महसूस किया जा सकता है।
  सुपर्ण यौधेय, भारत में गुप्तकाल अर्थात् 420 ई. पू. को, रघुवंश को, अभिज्ञान शाकुंतलम् और पाणिनी के समय को प्रकट करती कहानी है। इसी तरह दुर्मुख कहानी है, जिसमें 630 ई. का समय प्रकट होता है, हर्षचरित, कादम्बरी, ह्वेनसांग और ईत्सिंग के साथ हमें भी ले जाकर जोड देती है।
   चौदहवीं कहानी, जिसका शीर्षक चक्रपाणि है, 1200 ई. के नैषधचरित का तथा उस युग का खाका हमारे सामने खींचकर रख देती है।
   पंद्रहवीं कहानी बाबा नूरदीन से लेकर अंतिम कहानी सुमेर तक के बीच में लगभग 650 वर्षों का अंतराल है। मध्य युग से वर्तमान युग तक की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को अपने माध्यम से व्यक्त करती यह छह कहानियाँ—  बाबा नूरदीन, सुरैया, रेखा भगत, मंगल सिंह, सफ़दर और सुमेर अतीत से उतारकर हमें वर्तमान तक इस तरह ला देती हैं कि हमें एक सफर के पूरे हो जाने का अहसास होने लगता है। इन कहानियों में भी कथा-रस के साथ ही ऐतिहासिक प्रामाणिकता इस हद तक शामिल है कि कथा और इतिहास में अंतर कर पाना असंभव हो जाता है।
   राहुल सांकृत्यायन का यह कथा-संग्रह भले ही हिंदी के कथा-साहित्य की धरोहर हो, किंतु इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि ज्ञान-विज्ञान की अन्य शाखाओं में, इतिहास-भूगोल के अध्ययन में भी यह पुस्तक बहुत महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक है। बहुत सरलता के साथ कथा-रस में डुबकियाँ लगाते हुए मानव-सभ्यता के इतिहास को जान लेने के लिए इस पुस्तक से अच्छा माध्यम दूसरा कोई नहीं हो सकता। यहाँ पर वोल्गा से गंगा के बारे में संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध करा देने का उद्देश्य भी यही होगा कि जिज्ञासु पाठकगण इस पुस्तक के माध्यम से अपने अतीत को आसानी से जान सकें।
                                         डॉ. राहुल मिश्र

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