Tuesday 15 September 2015

वर्तमान दौर में शिक्षा का महत्व

    
    वर्तमान दौर में शिक्षा का महत्त्व
पढ़ना लिखना सीखो,  ओ मेहनत करने वालो ।
पढ़ना लिखना सीखो, ओ भूख से मरने वालो ।।
क ख ग घ को  पहचानो
अलिफ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई  को  हथियार
बनाकर   लड़ना    सीखो
पढ़ो,  लिखा  है  दीवारों पर मेहनतकश का नारा ।
पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा ।
पढ़ो,  अगर  अंधे विश्वासों  से  पाना है छुटकारा ।
पढ़ो,   किताबें  कहती  हैं- सारा  संसार  तुम्हारा ।।
जाने-माने रंगकर्मी सफ़दर हाशमी द्वारा रची गई इन पंक्तियों में शिक्षा के महत्त्व को बड़ी बेबाकी के साथ प्रकट किया गया है। स्वामी विवेकानंद का कहना था कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्ति प्रकट होती है। अगर व्यक्ति शिक्षित न हो, तो मनुष्य व पशु में अंतर नहीं रह जाता है। शिक्षा ही वह माध्यम है, जो मनुष्य को पशु से अलग करती है। शिक्षा उस धूप-पानी-मिट्टी की तरह होती है, जो किसी बीज को उपयुक्त वातावरण देकर पेड़ के रूप में विकसित कर देती है। शिक्षा व्यक्ति के विकास का प्रमुख साधन होती है। शिक्षित व्यक्ति ही अपने देश, काल व समाज के विकास को वास्तविक गति प्रदान कर सकता है। इसीलिए किसी देश या समाज की प्रगति या सांस्कृतिक संपन्नता को देखना हो, तो उस देश या समाज के साक्षरता प्रतिशत को देखा जाता है। इसी कारण दुनिया के हरएक देश में शिक्षा को महत्त्व दिया जाता है। जिन देशों ने शिक्षा की जरूरत को महत्त्वपूर्ण मानकर शैक्षिक विकास के लिए काम किया है, वे देश आज विकसित देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं। साक्षरता और शिक्षा की सीढ़ियाँ चढ़कर ही दुनिया के विकसित देशों ने विकास की चरम सीमा को प्राप्त किया है।
‘शिक्षा’ संस्कृत भाषा का शब्द है। इसका सीधा और सरल अर्थ होता है- विद्या या ज्ञान ग्रहण करना। भारतवर्ष की प्राचीनतम शिक्षा पद्धतियाँ इसी अर्थ में संचालित होती रहीं हैं। पुराने समय में, जब आज के जैसे संसाधन उपलब्ध नहीं थे, तब सामान्य लोग अपने अनुभवों के द्वारा या फिर वंशानुक्रम में, पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान अर्जित किया करते थे। आचार-विचार और व्यवहार का, रीति-रिवाजों का, खेती-किसानी-व्यापार आदि का और नीति-मर्यादा का ज्ञान इसी तरह लोगों को मिला करता था। उस समय अधिकांश लोगों को इसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होता था। धर्म और अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अलग व्यवस्था होती थी। धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में आत्मज्ञान को पाने के लिए, शाश्वत शांति के लिए, मुक्ति के लिए और तत्त्व साक्षात्कार के लिए शिक्षा को माध्यम बताया गया है। बौद्ध धर्म में त्रिशिक्षाओं का वर्णन है। इसमें पहली अधिचित्त शिक्षा, अर्थात् संस्कृत बुद्धि में उच्चतर शिक्षा है। दूसरी अधिशील शिक्षा, अर्थात् आचार-विचार की शिक्षा है। तीसरी अधिप्रज्ञा शिक्षा, अर्थात् तप एवं स्वाध्याय द्वारा विद्या या ज्ञान के उच्चतम स्तर को पाने की शिक्षा है। अर्जित ज्ञान का उपयोग समय, स्थान और व्यक्ति के अनुसार स्वविवेक से करना ही सच्ची शिक्षा होती है। इस प्रकार जीवन की सभी परिस्थितियों में खरी उतरने वाली, लौकिक और पारलौकिक जगत को सफल-सार्थक बनाने वाली शिक्षा को ही उत्तम माना गया है।
पुरातन भारतीय परंपरा में जिस शिक्षा की बात की जाती थी, उसमें लौकिक और पारलौकिक जगत्, दोनों के कल्याण का अंश होता था। आज की शिक्षा का अर्थ केवल लौकिक जगत् तक ही सिमट गया है। आज की शिक्षा भौतिक सुखों और संसाधनों को उपलब्ध कराने से भी जुड़ी है। आधुनिककाल में शिक्षा के जिस अर्थ को व्यवहार में लाया जाता है, उसमें विद्यालयी शिक्षा ही होती है। भारत में आज की जैसी विद्यालयी शिक्षा की शुरुआत गुलामी के दौर में हुई थी। अंग्रेजों ने भारत की परंपरागत शिक्षा-व्यवस्था के खिलाफ आधुनिक शिक्षा-प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसे मैकाले की शिक्षा-नीति के रूप में जाना जाता है। दूसरी ओर देश की आजादी के लिए लड़ रहे स्वाधीनता सेनानियों ने महसूस किया कि शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है, जो देश की बहुसंख्य जनता को अंग्रेजों के खिलाफ तैयार कर सकती है। शिक्षित जनसमुदाय तक अपनी बात पहुँचाना आसान होगा। भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए आजादी के आंदोलन की यह बड़ी जरूरत थी कि देश की अधिकांश जनता शिक्षित हो, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ खड़ी हो सके और अपने अधिकारों के लिए लड़ सके। इसके लिए सबसे पहली आवाज उठाने वाले स्वाधीनता सेनानी गोपालकृष्ण गोखले थे। गोपालकृष्ण गोखले ने सन् 1910 में सभी के लिए शिक्षा की माँग की थी। उनका विरोध भी हुआ था। बाद में राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, महात्मा गांधी और जाकिर हुसैन ने शिक्षा के विस्तार को अपने आंदोलन का हिस्सा बना लिया। राजा राममोहन राय ने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए उन्हें शिक्षित करने का विधिवत् आंदोलन भी चला रखा था, जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए।
देश को आजादी मिली और आजाद भारत के समक्ष अन्य चुनौतियों के साथ ही सबसे बड़ी चुनौती विशाल जनसमुदाय को शिक्षित करने की भी थी। एक लोकतांत्रिक देश की सफलता उसके शिक्षित नागरिकों पर ही निर्भर करती है, क्योंकि अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों को जाने बिना लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का जीवन गुलामों से बदतर हो जाता है। आज की जीवन शैली और बदलते वैश्विक परिदृश्य में तकनीकी, विज्ञान, सूचना-संचार, स्वास्थ्य शिक्षा और ऐसे ही ज्ञान के अनेक क्षेत्रों को जाने बिना जीवन गुजारना बहुत कठिन है। आज ग्लोबल विलेज की परिकल्पना से शहर ही नहीं, दूरदराज के गाँव और कस्बे भी प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए अनेक जानकारियों को प्राप्त करने और अपने परिवेश के प्रति जागरूक रहने के लिए आधुनिक शिक्षा एक अनिवार्य जरूरत बन गई है। इसके साथ ही आज पर्यावरण संकट, प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं जैसी समस्याएँ किसी एक व्यक्ति को नहीं, सभी को प्रभावित करने वाली वैश्विक समस्याएँ हैं। लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने, शिशु एवं मातृ मृत्युदर में कमी लाने हेतु जानकारी देने और जनसंख्या विस्फोट जैसी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए जनता को साक्षर करना, उन्हें शिक्षा के माध्यम से जागरूक करना आज के समय की बड़ी जरूरत है। इन समस्याओं को हल करने के लिए भी विज्ञान और तकनीक का ज्ञान होना जरूरी है, जिसे शिक्षा के बिना नहीं पाया जा सकता है। इस तरह आज के जीवन में भी शिक्षा ही मनुष्य की सबसे बड़ी सहयोगी है। शिक्षा के माध्यम से कोई व्यक्ति अपने अधिकारों को जान सकता है। वह अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं से स्वयं को और अपने समाज को बचा सकता है, मुसीबत में पड़े लोगों को रास्ता दिखा सकता है। आधुनिक संदर्भ में साक्षरता को शिक्षा की पहली सीढ़ी माना जाता है, इसलिए शिक्षित होने से पहले साक्षर होना जरूरी है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर वैश्विक स्तर पर यह जरूरत महसूस की गई कि व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्त्व का प्रचार-प्रसार किया जाए। इस कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 नवंबर, 1965 के दिन यह फैसला लिया कि हर वर्ष 08 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाए। सन् 1966 में दुनिया में पहला साक्षरता दिवस 08 सितंबर को मनाया गया और अब हर साल इस पर्व को मनाया जाता है। भारत के लिए इस पर्व का अपना विशेष महत्त्व है, क्योंकि भारत में आज भी साक्षरता दर संतोषजनक नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के सूचकांक (2015) के अनुसार भारत में साक्षरता प्रतिशत अब भी 75 प्रतिशत के वैश्विक स्तर से नीचे है।
भारतीय संविधान के भाग-4, अनुच्छेद-45 में राज्यों को यह सुझाव दिया गया है कि वे 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करें। सन् 1966 में कोठारी आयोग ने भी इस सिफारिश पर जोर दिया, मगर इसमें बड़ा बदलाव सन् 1993 में उच्चतम न्यायालय के जस्टिस उन्नीकृष्णन द्वारा दिए गए फैसले के बाद आया। फैसले के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद-45 में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया। सर्वशिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत इसी फैसले के अनुपालन में हुई। इस फैसले के कारण ही संविधान के 86वें संशोधन- 2002 में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में जीवन के अधिकार के साथ अनुच्छेद 21क के रूप में जोड़ा गया। शिक्षा का अधिकार कानून-2010 भी इसी फैसले का परिणाम है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने अपनी सिफारिशों में साक्षरता कार्यक्रमों और कंप्यूटर आधारित शिक्षा अभियानों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग की सिफारिशें की हैं। इन प्रयासों के कारण भारत में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा है। 15वीं राष्ट्रीय जनगणना- 2011 के अनुसार देश की साक्षरता दर 64.83 से बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गई। इसमें महिलाओं की साक्षरता दर 65.86 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 80.9 प्रतिशत है।
साक्षरता और शिक्षा के विकास में महत्त्वपूर्ण पक्ष महिलाओं का भी है। महात्मा गांधी का कहना था कि एक महिला को शिक्षित करने से एक परिवार शिक्षित हो जाता है। एक बच्चे की पहली पाठशाला उसकी माँ ही होती है और यदि माँ शिक्षित नहीं होगी, तो वह अपने बच्चे को आधुनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए किस प्रकार तैयार कर सकेगी? वह अपने बच्चे को आज की जरूरतों के मुताबिक गुणवत्तापरक शिक्षा के लिए किस प्रकार तैयार कर सकेगी? इन प्रश्नों के उत्तर महिला साक्षरता में ही मिल सकते हैं। इसके साथ ही महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के लिए, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु, महिला सशक्तिकरण हेतु महिलाओं का साक्षर होना अनिवार्य है।
साक्षरता और शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष कौशल विकास का है। आज व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से युवाओं को हुनरमंद बनाने की जरूरत है, क्योंकि देश में शिक्षा के विकास का एक स्याह पहलू यह भी है कि ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन की उपाधियाँ लेकर भी कई युवक बेरोजगार हैं, जबकि देश और साथ ही दुनिया में कुशल प्रशिक्षित और हुनरमंद युवाओं की बड़ी माँग है। नेशनल सैंपल सर्वे के आँकड़ों के मुताबिक देश में सिर्फ 3.5 फीसदी युवा ही हुनरमंद हैं, जबकि चीन में 45 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी युवा हुनरमंद हैं। सर्वे में बताया गया है कि सन् 2019 तक देश को 12 करोड़ हुनरमंद युवाओं की जरूरत होगी। दूसरी ओर दुनिया में भारत के तकनीकी प्रशिक्षित युवाओं की भी बड़ी माँग है। इसी को ध्यान में रखकर हाल ही में सरकार द्वारा ‘वर्ल्ड यूथ स्किल डे’ के अवसर पर ‘स्किल इंडिया मिशन’ की शुरुआत की गई है। इस अभियान के माध्यम से शिक्षा के साथ ही युवाओं को रोजगारपरक कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
अपने आधुनिक स्वरूप में शिक्षा का महत्त्व प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में है। शिक्षा मानव के विकास की पहली सीढ़ी है। अपने अधिकारों के लिए, अपने परिवेश के प्रति, अपने समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य है। पुरातन-परंपरागत शिक्षा का महत्त्व अपने स्थान पर अवश्य है, मगर आधुनिक जीवन शैली में, आज के समय की शिक्षा के माध्यम से स्वयं को तैयार करना समय की जरूरत है। इतना अवश्य है कि आज की शिक्षा-व्यवस्था में उन मानवीय मूल्यों, नैतिकताओं की आवश्यकता महसूस की जाती है, जिनके अभाव में शिक्षित समाज कई तरीके के विभेदों में, अनैतिक कार्यों में, अमर्यादित व्यवहारों में लिप्त हो जाता है। शिक्षा के साथ जुड़े इस प्रश्न का समाधान पुरातन भारतीय शिक्षा-व्यवस्था और आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था के मध्य संतुलन बनाकर खोजा जा सकता है। वर्तमान में शिक्षा के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता, मगर शिक्षा के साथ नैतिकता और संस्कारों को जोड़कर उसके उच्च गुणवत्तापरक स्वरूप को सहज भाव से ग्रहण किया जा सकता है और यही आज के दौर की माँग है। अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने शिक्षा के महत्त्व पर लिखा है कि-  
शिक्षा है सब काल कल्प-लतिका-सम न्यारी;
कामद, सरस, महान, सुधा-सिंचित अति प्यारी ।
शिक्षा है वह धारा, बहा जिस पर रस-सोता;
शिक्षा है वह कला, कलित जिससे जग होता ।।

                                                                डॉ. राहुल मिश्र



(आकाशवाणी, लेह से दिनांक 07 सितंबर, 2015 को प्रातः 0830 बजे प्रसारित)