Sunday 25 September 2011

बुंदेलखंड के सोमनाथ

बुंदेलखंड के सोमनाथ :  खंडहर में बसा इतिहास

 पुराने समय में शिवभक्त राजा, शासक या धर्मभीरु लोग अपने नाम के साथ नाथ या ईश्वर जोडकर शिवमंदिर का निर्माण कराया करते थे, किंतु सोमनाथ का नाम प्रायः गुजरात के प्रभासपत्तन नामक स्थान पर चालुक्य शासकों द्वारा बनवाए गए सोमनाथ मंदिर के लिए रूढ हो गया था। बुंदेलखंड क्षेत्र में पाठा की दुर्गम विंध्य श्रृंखलाओं के बीच सोमनाथ मंदिर, नाम सुनकर जितना आश्चर्य होता है उससे कहीं अधिक आश्चर्य मंदिर को देखकर होता है क्योंकि मंदिर का स्थापत्य मन को मोह लेने वाला है।
  यह क्षेत्र पुरातनकाल से ही धर्म, संस्कृति और मानव सभ्यता का बड़ा केंद्र रहा है। यहाँ कई राजवंश भी कायम रहे हैं जिनके प्रतीक गौरवपूर्ण अतीत के साक्ष्य के रूप में इस क्षेत्र में कायम हैं। पुरातन महत्त्व का ऐसा ही यह गुमनाम-सा प्रतीक चित्रकूट जनपद में कर्वी से मानिकपुर मार्ग पर स्थित चर गांव में है।
यह मंदिर वृत्ताकार पहाडी पर बना है। मंदिर तक पहुँचने के लिए बनी सीढियों के पास लाल बलुए पत्थर से बनी मुगदरधारी योद्धा, नृत्यगणेश मूर्तियों के साथ ही चित्रात्मक प्रस्तरों के भग्न खंड रखे हुए हैं। संभवतः इन प्रस्तरों को गांव के लोगों ने इस प्रकार रखा होगा। मंदिर में पडी हुई भावात्मक प्रस्तर कलाकृतियाँ, भग्न मूर्तियाँ इस बात को साबित करतीं हैं कि मंदिर बहुत पुराना होगा और इसका स्थापत्य भी अपने आप में बेजोड रहा होगा।
खंडहरनुमा मंदिर को देखने से पता चलता है कि इसमें अष्टकोणीय मण्डप रहा होगा, जिसकी छत गिर चुकी है। मण्डप के गुंबदों में अप्सराओं की सुंदर मूर्तियां हैं। मण्डप के पीछे गर्भगृह जैसा है, जहां शिवलिंग स्थापित है। यह गर्भगृह सुरक्षित लगता है, किंतु इसमें हुए नवनिर्माण को देखकर लगता है कि इसमें कुछ बदलाव हुआ है, यह किस कारण से हुआ, इसको कुछ कहा नहीं जा सकता। मण्डप के आगे की ओर बनी चारदीवारी से अनुमान लगता है कि यहाँ एक बड़ा मंदिर रहा होगा जो पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। गर्भगृह और मण्डप का पिछला हिस्सा भी एकदम ध्वस्त हो चुका है।
इस खंडहरनुमा गर्भगृह और मण्डप की प्रदक्षिणा के लिए एक रास्ता जैसा बनाया गया है, जिसमें रखे हुए विभिन्न आकार-प्रकारों के शिवलिंगों को देखकर ऐसा अनुमान होता है कि इसमें छोटे-छोटे कई शिव मंदिर रहे होंगे। इसी तरह मंदिर के प्रदक्षिणा-पथ के दोनों ओर टूटी-फूटी मूर्तियों, मण्डप के भग्नावशेषों और गुंबदों-प्रस्तरों को व्यवस्थित करके रखा गया है। इनमें से कई मूर्तियाँ दैनंदिन जीवन को व्याख्यायित करती हैं। इन मूर्तियों में से कुछ युद्ध की भी हैं, कुछ मातृ रूप प्रकट करती मूर्तियां हैं, कुछ मूर्तियों में दैवासुर संग्राम दर्शाया गया है और ऐसी ही एक विशालकाय प्रतिमा शेषशायी विष्णु की भी है। गुंबदों पर बनी विभिन्न मूर्तियों के साथ ही अन्य तमाम प्रस्तर मूर्तियों की अपनी एक विशेषता है कि उनके सिर के ऊपर गूमड़ जैसा बना हुआ है, जैसे कोई छोटा-सा शिवलिंग बना हो। यह गूमड़ या शिवलिंग भारशिवों के प्रतीक माने जाते हैं।
  इस क्षेत्र में नागवंशी भारशिवों का शासन था, जिनकी राजधानी नचना-कुठार (पन्ना, म.प्र.) में थी और उपराजधानी भारगढ़ (वर्तमान बरगढ़) थी। सोमनाथ मंदिर के निकट स्थित एक छोटे से गाँव बरकोठ या भारकोट का इतिहास भी ऐसे ही इनसे जुड़ा होगा। भारशिव शासक शैव मत के कट्टर अनुयायी थे और सिर पर शिवलिंग धारण किये हुए भारशिव प्रतिमाएं इनका प्रतीक होती थीं। गुप्त शासकों के शक्तिशाली होने पर नागवंशी शासकों ने उनसे रोटी-बेटी का संबंध स्थापित किया और इस तरह इस क्षेत्र के नागवंशी शासक गुप्त राजाओं के माण्डलिक बन गए तथा गुप्त शासकों का इस क्षेत्र में परोक्ष शासन स्थापित हुआ। सोमनाथ मंदिर में मिलने वाली भारशिव प्रतिमाएं और इनके साथ ही शेषशायी विष्णु की प्रतिमाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यह मंदिर गुप्तकाल की स्थापत्य कला की प्रेरणा लेकर, गुप्तकाल के स्थापत्य की तर्ज पर दूसरी से चौथी शताब्दी के मध्य भारशिवों द्वारा बनवाया गया होगा।
भारशिव (नागवंशी) शासकों की यह भी विशिष्टता रही है कि वे आदिवासी जीवन जीते हुए तथा शैव साधना करते हुए विधर्मी और परराष्ट्राक्रांताओं को पछाड़ते रहे हैं। यदि इतिहास को खंगाला जाय तो यह समझ में आता है कि गुप्त शासकों की सत्ता स्थापित करने और उनके शासन को समृद्ध, सफल बनाने में नागवंश के शासकों का अमूल्य योगदान रहा है। जब बुंदेलखंड में गुप्त शासकों की पकड़ धीमी पड़ने लगी तब बुंदेलखंड में गुप्त शासकों के मांडलिक वाकाटक शासकों का आधिपत्य कायम हुआ। वाकाटक शासकों के प्रतीक तो प्राप्त होते हैं, किंतु नागवंश के शासकों के प्रतीक बहुत कम ही मिलते हैं। इतिहास में दर्ज है कि नागवंशी शासक युद्ध आदि में व्यस्त रहे और इन्होने अपने शासन के प्रतीक स्थापित नहीं किये। इस कारण से भी यह मंदिर अनूठा, अद्वितीय, अतुलनीय और दुर्लभ सांस्कृतिक धरोहर की श्रेणी में आता है।
चर ग्राम के लोग बताते हैं कि चालीस वर्ष पहले तक यह मंदिर काफी हद तक ठीक स्थिति में था। बीहड़ में होने के कारण यह आक्रांताओं की नज़र में नहीं आया और शायद इसी कारण यह सुरक्षित भी रह सका। किंतु बाद में इस मंदिर की दुर्लभ मूर्तियां चोरी होती गईं। ग्रामवासियों से यह भी पता चला कि मंदिर में एक नागेश्वर शिवलिंग भी था जिसमें एक शिलालेख था। उस शिलालेख से मंदिर के इतिहास पर कुछ रोशनी पड़ सकती थी, किंतु उसकी चोरी हो चुकी है। लेकिन यह मंदिर नागशासकों का होगा इस तथ्य को नागेश्वर शिवलिंग के माध्यम से पुष्ट किया जा सकता है।
धार्मिक, पुरातात्त्विक विशिष्टता के साथ ही इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य भी गजब का है। चारों ओर हरियाली से भरी हुई विंध्य पर्वत श्रृंखला, मंदिर के पीछे की ओर बहती वाल्मीकि नदी और आगे चलकर वारुणी-वाल्मीकि नदियों का संगम ऐसे सुरम्य, मनोहारी प्राकृतिक दृश्य का सृजन करता है कि मन मुदित हो उठता है। बेशक, सोमनाथ मंदिर का भ्रमण धर्म, इतिहास, संस्कृति और प्रकृति के समवेत साहचर्य का अनूठा, अद्भुत आनंद देने वाला है।
यह गुप्तकालीन शिव मंदिर अपने अस्तित्व की आखिरी साँसें गिन रहा है। मंदिर के पूर्वोत्तर में बरकोठ गाँव, पूर्व की ओर लालापुर की पहाडी, देउरा-नेउरा की पहाडी और लहरी पुरवा है, यह सभी ऐतिहासिक महत्त्व के स्थल हैं और इन स्थलों पर ध्वंसावशेष आदि भी प्राप्त होते हैं, जो प्रायः नष्ट हो चुके हैं।


                      (दैनिक जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ, 30 मई, 2011) 
                                                          
डॉ. राहुल मिश्र








   
                                     

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