हमें एक जलता युग दिखा है, जो देखा वही कागजों पर लिखा
है... : डॉ. अजय प्रसून से डॉ. राहुल मिश्र की बातचीत
हिंदी के जाने-माने
कवि डॉ. अजय प्रसून (डॉ. अजय कुमार द्विवेदी) लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में रहते हुए
विगत पैंतालीस से अधिक वर्षों से साहित्यसेवा में संलग्न हैं। डॉ. प्रसून का जन्म
18 जनवरी, 1954 को लखनऊ में हुआ। आपके माता-पिता श्रीमती कांतीदेवी द्विवेदी व
श्री सरोज कुमार द्विवेदी धर्मनिष्ठ व सरल-सहज स्वभाव के थे। डॉ. प्रसून लखनऊ
स्थित प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के रूप में
अपनी सेवाएँ देते हुए भी वे कवि-कर्म में संलग्न रहे और संप्रति, सेवानिवृत्ति के
उपरांत अनवरत् साहित्य-साधना में संलग्न हैं।
डॉ. अजय प्रसून
अनागत कविता आंदोलन के प्रेरक, प्रवर्तक और प्रस्तावक हैं। ‘कठिन वर्तमान को जीते
हुए स्वर्णिम भविष्य की कामना’ के ध्येय-वाक्य पर डॉ. फ3सून द्वारा अनागत कविता
आंदोलन को उस समय स्वर दिया था, जब कविता में नकारात्मकता और नैराश्य का भाव बढ़ता
दिख रहा था। सत्तर के दशक में, जब कविता में संत्रास, त्रासदी, मोहभंग, हताशा,
निराशा जैसे भाव दिख रहे थे, उन दिनों में अनागत कविता आंदोलन के माध्यम से डॉ.
प्रसून ने कविता को लोकरंजन के साथ ही पथ-प्रदर्शन के सकारात्मक पक्ष से जोड़ने की
बात कही। सनातन परंपरा में कर्म की प्रधानता और भविष्य के प्रति सकारात्मकता का
सिद्धांत उनके द्वारा प्रवर्तित अनागत कविता आंदोलन के ध्येय-वाक्य में परिलक्षित
होता है।
डॉ. अजय प्रसून द्वारा रचित 1. युग के आँसू (खंडकाव्य), 2. गाओ
गीत सुनाओ गीत (बाल-काव्य / उ.प्र. शासन द्वारा पुरस्कृत), 3. बच्चों की प्यारी
कविताएँ (बाल-काव्य), 4. बच्चे गायें गीत (बाल-काव्य), 5. बच्चों शिष्टाचार न भूलो
(बाल-काव्य), 6. महानगर के बीच (हिंदी गजल), 7. बाँसुरी की भीतरी तह में (अनागत
काव्य-संग्रह), 8. दर्पण शिलालेख हो जाये (अनागत गीत-संग्रह), 9. आँसुओं का बयान
जारी है (अनागत गजल-संग्रह / उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अनुदान प्राप्त),
10. श्री हनिमान अस्सीसा, 11. श्री शनि अस्सीसा, 12. कालजयी हम प्यास लिये (अनागत
गीत-संग्रह), 13. प्रश्न अनशन किये जो बैठे हैं (मुक्तक संग्रह) आदि कृतियाँ
प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी तीन काव्य-कृतियाँ प्रकाशनाधीन हैं।
संपादक के रूप में डॉ. प्रसून ने शब्द
नए गढ़ने हैं, अनागत के कमल हैं हम... सहित हिंदी की प्रमुख काव्य-केंद्रित
त्रैमासिकी ‘ताम्रपर्णी’ के संपादन सहित हिंदी की शोध-संदर्भ पत्रिका नूतनवाग्धारा
के संयुक्त विशेष-अंक 44-48, वर्ष 14, दिसंबर, 2021 (अनागत कविता आंदोलन : नई सुबह
की आहट) का संपादन (अतिथि संपादक) किया
है।
डॉ. प्रसून को समकालीन बाल साहित्यकार के रूप में भी
जाना जाता है। वे हिंदी बाल-साहित्य का इतिहास में बाल-साहित्यकार के रूप में
स्थापित रचनाकार हैं। डॉ. प्रसून का कवि-जीवन ही बाल साहित्यकार के रूप में
प्रारंभ हुआ। प्रकाशित बाल-काव्य संग्रहों के अतिरिक्त हिंदी की प्रतिष्ठित बाल-साहित्य
की पत्रिकाओं व समाचारपत्रों के परिशिष्ट, यथा- बाल भारती, नंदन, कच्ची धूप, बाल
कविता, बाल दर्शन, मानवी, यू.एस.एम. पत्रिका, बाल गीतांजलि, बाल वाणी, बाल परंपरा,
आज, स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, नवजीवन, मेला, योजना, बाल साहित्य समीक्षा,
स्वतंत्र भारत सुमन, खिले अधखिले, दिल्ली मासिक, शब्दलता, नया प्रभात, पराग,
कुटकुट, बाल मन, यश कमल, बाल गीत, पत्रिका, जनलोक, संगीत, दृष्टिकोण बाल विशेषांक
आदि में बाल-कविताएँ प्रकाशित हुईं है। हिंदी की प्रतिष्ठित ताम्रपर्णी पत्रिका के
बाल-विशेषांक का संपादन भी डॉ. प्रसून ने किया है।
डॉ. प्रसून को विभिन्न सम्मानों एवं
पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया हैं। इसमें कुछ प्रमुख सम्मान व पुरस्कार हैं- कृति
‘गाओ गीत सुनाओ गीत’ के लिए उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अनुशंसा पुरस्कार-
1981, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी जी की इच्छा पर लखनऊ की संस्थाओं द्वारा
अभिनंदन, 28.02.1980 को, मुगलसराय लायंस क्लब द्वारा सम्मान, 1992, कवितालोक सृजन
संस्थान द्वारा गीतिका-गंगोत्री सम्मान- 2015, काव्य-गंगोत्री सम्मान- 2017, महिला
उत्थान समिति द्वारा साहित्य सुधाकर सम्मान- 2019, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान
द्वारा साहित्य गौरव सम्मान- 2019, यू.पी. प्रेस क्लब द्वारा साहित्य सृजन सम्मान-
2017, सुंदरम् संस्थान द्वारा सुंदरम् रत्न सम्मान- 2018, जी.डी.
फाउंडेशन द्वारा अवधश्री सम्मान- 2019, सालासार (राजस्थान) में साहित्य सुधाकर सम्मान- 2019, स्नेह
वेलफेयर फाउंडेशन द्वारा साहित्य सूर्य सम्मान- 2018, कविता लोक बिजनौर द्वारा
कवितालोक आदित्य सम्मान- 2019, काव्यक्षेत्र संस्था द्वारा काव्यक्षेत्र काव्य
किरीट सम्मान, युवा रचनाकार मंच, लखनऊ द्वारा ‘डॉ. अनंत माधव चिपलूणकर स्मृति
सम्मान- 2019, भारतीय अटल सेना (राष्ट्रवादी) द्वारा प्रदत्त ‘भारतीय अटल लाइफ
टाइम अचीवमेंट अवार्ड- 2020, श्री शब्द सरिता द्वारा सम्मान, 2021, युवा रचनाकार
मंच द्वारा आजीवन साहित्यिक सेवा सम्मान- 2021, शिवभार गुर्जर लखनवी संस्था द्वारा
‘आचार्य पिंगल साहित्यश्री सम्मान’, पं. दुर्गाप्रसाद मित्र साहित्य सभा द्वारा
पं. दुर्गा प्रसाद मित्र साहित्य शिरोमणि सम्मान- 2020, साहित्यिक संस्था काव्य
प्रवाह का ‘काव्य गौरव सम्मान’, मार्तण्ड साहित्य संस्था द्वारा सम्मान- 2020,
उत्तरप्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, लखनऊ द्वारा अनागत मुक्तक-संग्रह-
प्रश्न अनशन किये जो बैठे हैं पर एक लाख रुपये का अकबर इलाहाबादी पुरस्कार- 2021,
युगधारा फाउंडेशन द्वारा ‘साहित्य प्रभाकर सम्मान- 2022’, कविता लोक द्वारा
‘गीतिका सम्मान- 2022, सुजान साहित्य संस्थान, जरई कलाँ, सुलतानपुर द्वारा
‘साहित्य शिरोमणि सम्मान- 2022’, अभिभावक कल्याण संघ, लखनऊ द्वारा ‘समाजसेवा
प्रतिनिधत्व सम्मान’, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सोहनलाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान- 2021 आदि।
डॉ. प्रसून को अपनी युवावस्था में डॉ.
रामकुमार वर्मा के साथ भी मंच पर कविता पढ़ने का अवसर मिला है। इसके अतिरिक्त
राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, बलवीर सिंह ‘रंग’, शारदा प्रसाद भुशुण्डि, उमादत्त
त्रिवेदी आदि प्रख्यात कवियों के साथ मंच पर उपस्थिति रही है। विगत पैंतालीस से
अधिक वर्षों से हिंदी के नामचीन कवियों के मध्य ख्याति है। आज भी अनेक मंचों पर
आपकी कविताएँ सराही जाती हैं। कविताओं व गीतों के वीडियो यू-ट्यूब आदि सोशल
नेटवर्किंग के पटल पर उपलब्ध हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्रों से नियमित
प्रसारण, आकाशवाणी के अनुबंधित रचनाकार। इसके साथ ही सारेगामा प्रा. लि. ने आपके
गीतों पर एक अलबम तैयार किया है। इसमें जगजीत सिंह के साथ आपके भी गीत हैं, जिसे
देश के जाने-माने गायकों ने स्वर दिए हैं। डॉ. प्रसून एक अनौपचारिक गुरुकल की
भाँति युवा पीढ़ी को कविता के गुर सिखाते हैं, और प्रोत्याहित भी करते हैं। इस
हेतु उनके द्वारा विभिन्न सम्मानों, जैसे- अनागत कविता मार्तण्ड सम्मान (कवियों
हेतु), अनागत कविता चंद्रिका सम्मान (कवयित्रियों हेतु), अनागत कविता भारती
सम्मान, अनागत कविता पितृ स्मृति सम्मान आदि प्रदान किए जाते हैं, जो नवोदित कवियों-कवयित्रियों
को प्रेरणा व प्रोत्साहन देते हैं।
सरल-सहज व्यक्तित्व के धनी और
प्रचार-तंत्र से सर्वदा दूर वाग्देवी की आराधना और सेवा में संलग्न रहने वाले डॉ.
अजय प्रसून ऐसे रचनाकार, कवि और साहित्यसेवी हैं, जिन्होंने कविता की विभिन्न
पद्धतियों और विधाओं, जैसे- हिंदी गजल, गीतिका, दोहा, मुक्तक, मुक्तछंद, नवगीत,
अवधी लोकगीत आदि में प्रचुर मात्रा में लेखन किया है। विगत दिनों उनसे भेंट के समय
डॉ. राहुल मिश्र ने उनसे हिंदी कविता के सामयिक संदर्भों सहित विभिन्न पक्षों पर
वार्ता की। प्रस्तुत हैं इस वार्ता के महत्त्वपूर्ण अंश-
डॉ. राहुल
मिश्र- हाल ही में आपको उत्तरप्रदेश
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, लखनऊ द्वारा अनागत मुक्तक-संग्रह- प्रश्न अनशन
किये जो बैठे हैं पर एक लाख रुपये का अकबर इलाहाबादी पुरस्कार- 2021 तथा उत्तरप्रदेश
हिंदी संस्थान द्वारा सोहनलाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान- 2021 प्रदान किए गए
हैं। इनके लिए शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिए।
डॉ. अजय प्रसून- हार्दिक धन्यवाद,
आपका।
डॉ. राहुल मिश्र- आप विगत पैंतालीस
वर्षों से साहित्य-साधना में संलग्न हैं। आपका लेखन-कार्य मुख्यतः कविता के
क्षेत्र में रहा है। अपने विस्तृत रचना-संसार पर आपका क्या कहना है?
डॉ. अजय
प्रसून- मेरा लेखन 45 वर्षों से नहीं अपितु 52 वर्षों से चल रहा है। यह सही है, कि
इस दौरान अधिकांशतः मैंने काव्य का ही सृजन किया है, लेकिन अनेक कहानियों एवं
नाटकों का सृजन भी मेरे द्वारा संपन्न हुआ है। मैंने इस बीच तीन खंडकाव्य भी रचे
हैं, साथ ही विभिन्न विषयों पर लेख भी लिखे हैं। ताम्रपर्णी (त्रैमासिक पत्रिका)
का प्रकाशन एवं संपादन भी किया है। अब तक मेरी 15 काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी
हैं, साथ ही मैंने अपने संपादन में कई अनागत काव्य-कृतियाँ सहयोगी रचनाकारों की
कविताओं सहित प्रकाशित की हैं। एचएमबी सारेगामा द्वारा मेरे गीतों का एल्बम भी
निकाला गया है। अनेकानेक शोध-प्रबंधों में मेरी चर्चा भी शामिल है। बाल-कविताओं का
सृजन भी प्रचुर मात्रा में मेरे द्वारा किया गया है।
डॉ. राहुल
मिश्र- सत्तर के दशक में जब आपने अनागत कविता आंदोलन की प्रस्तावना रखी, प्रवर्तन
किया, उस समय हिंदी कविता की दशा-दिशा क्या थी, और अनागत कविता आंदोलन की
प्रासंगिकता उस समय आप किस प्रकार देखते थे?
डॉ. अजय प्रसून- सन 70 से ही मेरा
काव्य-सृजन शुरू हुआ। उस समय बड़े-बड़े दिग्गज कवियों का जमावड़ा साहित्य व कविता
के क्षेत्र में था। कविता उस समय अपने चरमोत्कर्ष पर थी। कविता मंचों पर काव्य-पुष्पों
की वर्षा होती थी, किंतु ऐसी स्थिति में नए कवियों की उपेक्षा भी अपने चरम पर थी।
अपना स्थान बना पाना अति दुष्कर कार्य था, किंतु पूरी लगन और मन से किए गए प्रयास
व्यर्थ नहीं जाते, अतः मुझे भी अवसर प्राप्त होते गए और मेरी कविता अपने लक्ष्य को
प्राप्त करती रही। सन 1981 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा मेरी बाल-कृति ‘गाओ
गीत सुनाओ गीत’ को अनुशंसा पुरस्कार भी मिला। ऐसे समय में मैंने अनागत कविता
आंदोलन की प्रस्तावना भी सहित्य के सम्मुख प्रस्तुत की। थोड़े विरोध और सहयोग के
बीच उसकी चर्चा भी प्रचुर रूप में चल पड़ी। अनागत कविता आंदोलन की प्रस्तावना
रखने, प्रवर्तन करने आदि के संबंध में अपनी कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा-
हमें एक जलता युग दिखा है, / जो देखा
वही कागजों पर लिखा है ।
हमारा सृजन तो सृजन ही नहीं है, / अनागत के इतिहास की
भूमिका है।
डॉ. राहुल मिश्र- विगत पैंतालीस से
अधिक वर्षों की काव्य-यात्रा में आपने अनेक उतार-चढ़ावों को कविता के क्षेत्र में
देखा होगा। अनेक वाद और आंदोलन भी इस अवधि में आए, और चले गए, किंतु अनागत कविता
आंदोलन के अनवरत चलते रहने का कारण क्या दिखता है?
डॉ. अजय प्रसून- यह सत्य है, कि जिस
समय मैंने अनागत कविता आंदोलन की शुरुआत की थी, प्रवर्तन किया था, उस समय कई वाद
और आंदोलन चल रहे थे। कई विलुप्त भी हो गए थे, और अनेक आंदोलन बाद के वर्षों में
अचर्चित हो गए, किंतु अनागत कविता आंदोलन आज भी मुखर है, अनवरत प्रवाहमान है। इसके
पीछे दार्शनिक विवेचन और भारतीय जीवन-दर्शन व सिद्धांत हैं। यह शाश्वत भावों और
विचारों से सराबोर मानव के लिए हितचिंतक और नवीन पीढ़ी को नई दिशा देने वाला
आंदोलन है। अनागत के मूल में कठिन वर्तमान जीते हुए स्वर्णिम भविष्य की कल्पना
साकार होती हुई दिखती है। इसमें सकारात्मकता है, फल की कामना के स्थान पर कर्म की
प्रधानता है और नकारात्मकता के स्थान पर कल के सुंदर व सुखद होने की कामना है। ये
सभी जीवन को गतिशील और ऊर्जावान बनाने वाले पक्ष हैं। इसी कारण अनागत कविता आंदोलन
अविरल गतिमान है, लोगों को जीवन जीने की दिशा दे रहा है।
डॉ. राहुल मिश्र- अनागत कविता आंदोलन
में सहभागी रहने वाले पुराने और वरिष्ठ कवियों के साथ ही वर्तमान में अनागत कविता
की सर्जनात्मक दिशा और दशा के बारे में कुछ बताइए?
डॉ. अजय प्रसून- अनागत कविता आंदोलन
को साकार रूप प्रदान करने के लिए पुराने और वरिष्ठ कवियों का सहयोग तो मिला ही,
साथ ही उस समय के युवा कवियों का भरपूर सहयोग भी मिला। इसी के परिणामस्वरूप लगभग 4
अनागत कविता-संग्रह मेरे संपादन में प्रकाशित हुए, जिसमें 100 से अधिक रचनाकारों
की कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। आज की स्थिति में अगर हम देखें, तो अनागत काव्य-गोष्ठियों
के माध्यम से कई सौ रचनाकार इस आंदोलन से जुड़े हैं। कोरोना के कालखंड में, व इसके
बाद भी आनलाइन अनागत काव्य-गोष्ठियों का क्रम चलता आ रहा है। प्रतिमास द्वितीय रविवार
को अनागत काव्य गोष्ठियाँ आयोजित करने का क्रम भी निरंतर चल रहा। इन गोष्ठियों में
नए रचनाकारों को जुड़ने का, सीखने का और साथ ही अपनी रचनाशीलता को साझा करने का
अवसर मिलता है। इन काव्य-गोष्ठियों में देश-विदेश के रचनाकार और कवि सम्मिलित होते
रहते हैं। विगत 23 जनवरी को अनागत दिवस के अवसर पर श्री राम दुलारे सिंह जी के
अनागत कविता-संग्रह ‘वर्तमान तो पल भर का है’ का लोकार्पण भी संपन्न हुआ। वर्ष
2020 में अनागत कविता आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी आयोजति हुई
थी। इसमें विदेशों से जुड़े विद्वानों ने, विशेषकर मॉरीशस से जुड़े विद्वानों ने
अपने शोध-प्रबंध प्रस्तुत करते हुए यह स्थापित किया, कि विदेशों की धरती पर भी रचे
जा रही कविताओं में अनागत कविता की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं। यह संगोष्ठी
अनागत कविता आंदोलन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रही। यू-ट्यूब में इस संगोष्ठी के
वीडियो बहुत देखे गए हैं।
डॉ. राहुल मिश्र- अनागत कविता के
दार्शनिक संदर्भ या समसामयिक स्थितियों के व्यावहारिक संदर्भ कौन-से हैं, जिनके
कारण आज की पीढ़ी भी इस विचार के साथ जुड़ी दिखती है?
डॉ. अजय प्रसून- अनागत कविता आंदोलन
की अवधारणा पूर्णरूपेण दार्शनिक है। वह इसलिए, कि अनागत केवल आज की नहीं, वरन
युगों पुरानी मान्यताओं को भी स्वीकारता है। आज की, यानि समसामयिक स्थितियों को भी
स्वर प्रदान करता है। अगर हम श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड का अवलोकन करें, तो
पूरा उत्तरकांड अनागत कविता को बल प्रदान करता है, क्योंकि इसमें कलियुग में घटने
वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी प्रस्तुत किए गए हैं, जो आज की स्थितियों में हम
स्पष्ट रूप से देख पा रहे हैं। अनागत भविष्य की बात भी करता है, और वर्तमान की
विषमताओं से दो-चार होने के लिए एक रास्ता भी दिखाता है। गीता का कर्मयोग इसमें
परिलक्षित होता है। नकारात्मकता के स्थान पर सकारात्मकता के कारण युवा पीढ़ी इस
आंदोलन से जुड़ी है।
डॉ. राहुल मिश्र- कविता-लेखन के अपने
प्रारंभिक दिनों का कोई संस्मरण यदि ना सकें, तो अच्छा लगेगा?
डॉ. अजय प्रसून- सन् 1978 में
बाराबंकी के जवाहरलाल नेहरू कॉलेज में एक अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन हुआ था, जिसमें
देश के स्वनामधन्य साहित्यकार, कवि मंच पर मौजूद थे। डॉ. रामकुमार वर्मा जी भी आए
थे। उन्होंने सरस्वती-वंदना से कवि-सम्मेलन की शुरुआत की, तत्पश्चात मुझे काव्य-पाठ
के लिए आमंत्रित किया गया। काव्य-पाठ में मैंने अपना शृंगारिक गीत-
इतना मन को छुओ न श्यामल तन की प्यास रेख
हो जाए,
ऐसा भी शर्माना क्या है दर्पण शिलालेख
हो जाए ।।.....
पढ़ा। पढ़ते ही वातावरण एकदम शांत हो
गया। यह देखकर मुझे अनुभव हुआ कि मेरा गीत व्यर्थ हुआ, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं
हुई। अतः गीत पढ़कर मैंने माइक छोड़ दिया और हताश होकर जाने लगा। तभी डॉ. कुँवर
चंद्रप्रकाश सिंह जी ने कहा अभी और पढ़िए..... आपने बहुत अच्छा गीत पढ़ा है। पूरे
पांडाल में तालियों की गड़गड़ाहट हुई। मंच और पांडाल की करतल ध्वनि सम्मिलित रूप
से सुनाई पड़ी, जिसे सुनकर मेरी हताशा दूर हुई और फिर मैंने मन मुताबिक और अन्य
गीत पढ़े।
डॉ. राहुल मिश्र- आपका सारा जीवन लखनऊ
में बीता है। लखनऊ तो साहित्य की भी राजधानी रही है। अनेक ख्यातिलब्ध साहित्यकार,
कवि लखनऊ में हुए हैं, या जुड़े रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में पुराने लखनऊ के
साथ ही आज के समय को आप देखते हुए क्या कहना चाहेंगे?
डॉ. अजय प्रसून- मेरा सारा जीवन लखनऊ
में ही बीता। सर्वश्री अमृतलाल नागर, श्री भगवतीचरण वर्मा, श्री दिवाकर
अग्निहोत्री, श्री गिरिजा दयाल गिरीश, श्री विष्णु कुमार त्रिपाठी राकेश, श्री
महेश प्रसाद, श्री विनोद चंद्र पांडे, श्री शिव सिंह सरोज, श्री ठाकुर प्रसाद सिंह,
श्री सिद्धेश्वर क्रांति, श्री देवी शंकर मिलन, श्री महेश प्रसाद श्रमिक आदि श्रेष्ठ
रचनाकारों से लखनऊ की पहचान होती थी। व्यक्तिगत रूप से मेरा बहुत जुड़ाव किसी से
नहीं रहा, लेकिन अनेक साहित्यिक आयोजनों में इन विभूतियों के साथ रहने का अवसर
प्रायः मिलता रहता था। आज भी मैं स्वांतः सुखाय के भाव से सृजन में संलग्न रहता
हूँ। आज की स्थिति में साहित्य की एक बड़ी भीड़ है, और सभी अपनी क्षमता-अनुसार
अच्छा लिख भी रहे हैं, लेकिन जो कविता का रसानंद पूर्व में साहित्यिक आयोजनों में
आता था, अब उसका उस रूप में अनुभव नहीं होता है।
डॉ. राहुल मिश्र- आप मंचीय कविता के
भी सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने देश के विभिन्न स्थानों में कविता-पाठ किया है।
मंचीय कविता के पुराने समय और वर्तमान के बारे में आपका क्या कहना है?
डॉ. अजय प्रसून- मंचीय कविता की जाए,
तो पहले के मंचों पर बहुत जाँच-परख कर ही कवियों को मंचों पर आमंत्रित किया जाता
था। और चुने हुए मंच-सिद्ध कवि की कविता-पाठ कर पाते थे, किंतु आज यह स्थिति नहीं
है। आज के कवि मात्र छह माह या एक साल की अवधि में अखिल भारतीय स्तर के कवि बन
जाते हैं और अपने आप को बड़े रचनाकारों की पंक्ति में शामिल करवा लेते हैं। इससे नवोदित
कवियों का बड़ा नुकासन भी होता है, क्योंकि मंचीय कविता की बारीकियों को सीखने के
लिए भी समय देना होता है।
डॉ. राहुल मिश्र- बाल साहित्यकार के
रूप में वर्तमान बाल-साहित्य को किस प्रकार देखते हैं? बीस-पचीस वर्ष पहले
बाल-साहित्य की क्या स्थिति थी, आपका क्या कहना है?
डॉ. अजय प्रसून- कविता के साथ-साथ बाल
साहित्य से मैं लगातार जुड़ा रहा हूँ। पिछले वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश हिंदी
संस्थान द्वारा सोहनलाल द्विवेदी बाल कविता सम्मान भी दिया गया है। बीस-पचीस वर्ष
पहले भी देखा जाए तो बाल-साहित्य का स्वरूप उत्कृष्ट था, और आज की स्थिति में भी
हम देखते हैं कि जो भी बाल-साहित्यकार अपना सृजन कर रहे हैं, वह उत्कृष्ट कोटि का
है। एक साहित्यकार की पूर्णता तभी मानी जाती है, जब वह बाल-साहित्य के सृजन में
स्थापित हो जाता है। कारण, बाल-साहित्य देश के कर्णधारों को तैयार करने वाला होता
है, उनके अंदर संस्कार डालने वाला होता है। इस दृष्टि से स्वयं को धन्य मानता हूँ,
कि मैंने बाल-साहित्यकार के रूप में जितना भी सृजन किया, उसे समाज ने स्वीकार, हिंदीसेवी
संस्थाओं और अन्य सुधी पाठकों से सराहा।
डॉ. राहुल मिश्र- आज की कविता पर आपके
क्या विचार हैं? कविता की दिशा मूलतः किस ओर होनी चाहिए, या समाज कैसी कविताई की
अपेक्षा रखता है?
डॉ. अजय प्रसून- आज की कविता के प्रति
मेरे यही विचार है, कि जो भी लिखा जा रहा है वह समसामयिक परिस्थितियों व समस्याओं
को समेटते हुए लिखा जा रहा है। इसमें समाज को दिशा देने, समस्याओं के निराकरण करने
का पक्ष भी होना चाहिए। आज की कविता अनेक राजनीतिक व समाजिक-धार्मिक प्रपंचों व
कुविचारों से आहत दिखती है। हमारा प्रयास तो यही रहा है और रहेगा कि आज की कविता
इन कुचेष्टाओं से दूर रहकर शुद्ध कविता के ही रूप में सामने आए। यही आने वाले समय
की कविता के लिए उचित होगा।
डॉ. राहुल मिश्र- आपकी प्रिय कविता या
गजल, की चार पंक्तियाँ बानगी के रूप में सुनकर कृतार्थ होना चाहेंगे।
डॉ. अजय प्रसून- मेरी प्रिय पंक्तियों
के रूप में मेरा एक छंद प्रस्तुत है, जो बहुत पसंद किया जाता है, और जिसे आप मेरा
‘टाइटल सांग’ भी कह सकते हैं-
एक राह खोजिए हजार राहें पाइएगा, /
लक्ष्य बिखरे पड़े हैं कितने स्वराज के।
जिंदगी को कर्म में ही लीन होने दीजिए
तो, / द्वार खुल जाएँगे मुक्ति के जहाज के ।
टूटते हुए पलों की ओर मत देखिएगा, स्वप्न
देखिएगा चेतना के स्वर साज के ।
एक बीज धरती की कोख में दबाइए तो, लाख-लाख
बीज होंगे सामने समाज के ।।
डॉ. राहुल मिश्र- लंबी वार्ता को
विराम देने से पहले आप आज के नवोदित कवियों-कवयित्रियों को क्या संदेश देना
चाहेंगे? विशेष रूप से आपके द्वारा प्रारंभ किए गए पुरस्कारों के संदर्भ के
साथ...।
डॉ. अजय प्रसून- आज के नवोदित कवि और
कवयित्रियों के लिए मुझे यही कहना है, कि हम जो भी लिखें, उसे महज वाहवाही पाने के
लिए ना लिखें। ऐसा साहित्य, ऐसा काव्य सृजित करें, जो मानव और मानवता के लिए हो,
जो कि पीड़ितों और दुःखी लोगों की वेदना व कष्ट को दूर कर सके। हम समाज को
सकारात्मक मार्ग प्रदर्शित करने के लिए सृजन करें। यही अनागत कविता आंदोलन की
जिजीविषा है। इसके साथ ही सृजन कठिन वर्तमान को जीते हुए स्वर्णिम भविष्य की
कल्पना को साकार रूप प्रदान करने वाला हो। आज की पीढ़ी के लिए इन्हीं उद्देश्यों
की पूर्ति हेतु मेरी संस्था अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान द्वारा कवियों के
लिए ‘अनागत मार्तंड’ एवं कवयित्रियों के लिए ‘अनागत चंद्रिका सम्मान’ प्रतिमाह
प्रदान किया जाता है। वार्षिक सम्मानों में ‘अनागत कविता भारती सम्मान’ एवं ‘अनागत
पितृ-स्मृति सम्मान’ हैं।
डॉ. राहुल मिश्र- आपका बहुत-बहुत
धन्यवाद और आभार। आपने अपनी व्यस्ततता के बीच से यह समय निकाला, साहित्य और कविता
पर अनेक रुचिकर व महत्त्वपूर्ण बातें आपसे जानने को मिलीं। पुनः आपके प्रति आभार
और कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। सादर प्रणाम।
डॉ. अजय प्रसून- आपका भी धन्यवाद और
आभार।
No comments:
Post a Comment