महापंडित
राहुल सांकृत्यायन की कालजयी कृति
हिमालय की तराई की रंगीन मिठास :
बहुरंगी मधुपुरी
हिमालय के साथ जुड़ा राहुल
सांकृत्यायन का नेह-प्रेम जगजाहिर है। उन्होने ऊपरी हिमालयी परिक्षेत्र अर्थात्
लदाख, तिब्बत और चीन तक कई बार यात्राएँ की हैं और यहाँ के धर्म, संस्कृति तथा
ज्ञान को सारी दुनिया के लिये सुलभ बनाने में योगदान दिया है। राहुल जी का जितना
लगाव ऊपरी हिमालयी परिक्षेत्र से रहा है, उतना ही लगाव निचले हिमालयी परिक्षेत्र
से भी रहा है। देश-दुनिया में आते बदलावों के कारण परिवर्तन की तेज लहर जितनी धीमी
गति से हिमालय के ऊपरी परिक्षेत्र में आई, उतनी ही तेजी के साथ परिवर्तन की बयार
निचले हिमालयी परिक्षेत्र में आई और उसे प्रभावित किया। निचले हिमालयी परिक्षेत्र
में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का कुछ भाग और दार्जिलिंग-कलिमपोंग का
इलाका आता है। इन क्षेत्रों में अंग्रेज हुक्मरानों के आगमन के साथ ही आधुनिकता का
विकास हुआ, जो अंग्रेजों के जाने के बाद भी लगातार चलता ही रहा।
राहुल सांकृत्यायन ने ऊपरी हिमालय
परिक्षेत्र में फैले ज्ञान के अध्ययन के अतिरिक्त निचले हिमालयी परिक्षेत्र में
आते सांस्कृतिक एवं सामाजिक बदलावों का गहन अध्ययन भी किया है। उनका यह अध्ययन
उनकी कहानियों में उतरा है। निचले हिमालयी परिक्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक
सरोकारों से उनका कहानी-संग्रह है बहुरंगी मधुपुरी । उनके इस कहानी-संग्रह
में इक्कीस कहानियाँ संग्रहीत हैं।
कहानी-संग्रह का शीर्षक ही इन कहानियों
की तासीर को बताने के लिये पर्याप्त है। इस संग्रह की प्रत्येक कहानी का अपना अलग
रंग है। इन कहानियों में कहीं अमीर लोगों के रहन-सहन को, उनके ऐशो-आराम और
विलासिता को प्रकट किया गया है तो कहीं इस क्षेत्र के लोगों के जीवन को प्रकट किया
गया है।
मधुपुरी शब्द हिमालय की तराई की प्राकृतिक
सुंदरता को, उसकी मधु सदृश्य मिठास को बताने का काम करता है। राहुल जी ने अपने
कहानी-संग्रह बहुरंगी मधुपुरी की
भूमिका में अपनी कथा-भूमि को विलासपुरी भी कहा है। उनके द्वारा यह संबोधन दिया
जाना काफी हद तक सही और प्रासंगिक सिद्ध हो जाता है, जब हम उनकी कहानियों को पढ़ते
हैं।
भारत में जब अंग्रेज हुक्मरान आये तो
उन्हें यहाँ की गर्मी ने बहुत सताया। इसी संकट ने मधुपुरी या विलासपुरी अर्थात्
निचले हिमालयी परिक्षेत्र के सौंदर्य से, यहाँ की शीतल-मंद-सुगंधित बयार से
अंग्रेज हुक्मरानों को जोड़ दिया। इस तरह अंग्रेज अफसरों ने भारत में भी एक
इंग्लैण्ड को पा लिया था और इसी कारण वे इस समूचे क्षेत्र को एक मिनी इंग्लैण्ड की
तरह विकसित करने लगे थे। अंग्रेजों की देखा-देखी भारत के अमीर-सेठ-साहूकार और
राजे-महराजे भी इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित हुए और इस तरह से यह क्षेत्र विलासपुरी
के तौर पर विकसित हो गया। राहुल जी ने अपनी सभी कहानियों में इस स्थिति को पूरे
कथा-रस के साथ, रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है।
दूसरी ओर इन कहानियों में इस क्षेत्र
के मूल निवासी भी हैं, जो अमीरों के अजीबोगरीब शौकों को देखते हैं, कभी-कभी उनका
शिकार भी बनते हैं। अपमानित भी होते हैं और धन भी कमाते हैं।
ब्रिटिश भारत जैसे-जैसे आजादी की राह
पर बढ़ रहा था, वैसे-वैसे यह क्षेत्र भी अपना महत्त्व बढ़ा रहा था। विकास के नए-नए
आयाम खुलते जा रहे थे। विकास की यह गति बहुरंगी मधुपुरी की हर-एक कहानी में सीढ़ी-दर-सीढ़ी चलती दिखाई
देती है। फिर एक दिन ऐसा भी आता है, जब अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ता है।
अंग्रेज भारत छोड़कर चले जाते हैं और भारत में देशी अंग्रेज रह जाते हैं। वे उसी
पुरानी परंपरा को चलाना चाहते हैं। कहानी-संग्रह भी अपने अंत पर पहुँचता है। आखिरी
कहानी काठ का साहब देशी
अंग्रेजों की मानसिकता पर आधारित है। इस कहानी में भ्रष्टाचार भी है, शाही-रईसी शौक भी हैं
और अमीर गरीब का भेद भी है। इस तरह आखिरी कहानी में हमें निचले हिमालयी क्षेत्र का
वर्तमान देखने को मिलता है। वास्तव में यह कहानी-संग्रह इतिहास, संस्कृति और समाज
में आते बदलाव को तो बतलाता ही है, साथ ही समाज की कड़वी हकीकत को भी हमारे सामने
स्पष्ट कर देता है।
डॉ. राहुल मिश्र
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